Friday, 11 December 2015

himalay ke yogiraj

परम श्रेष्ठ योगिराज परमहंस स्वामी निखिलेस्वरानंदजी 
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हिमालय के क्षेत्र में स्वामी निखिलेस्वरानन्दजी का  नाम  बहुत  ही प्रसिद्ध हैं 
भारतवर्ष की लगभग सभी विद्याओ मे पारंगत थे जैसे मन्त्र ,तन्त्र ,शाबरतंत्र
और मन्त्र ,लामा साधनाए, वाममार्गी ,अघोरी साधनाए ,हठमार्ग इसके अला -
वा योग ,ज्योतिष ,सम्मोहन विज्ञान और भी बहुत सारी विद्याओ  मे  स्वामी 
जी पारंगगत थे इस सांसारिक जीवन मे लोग  उन्हें नारायणदत्त  श्रीमालीजी 
के नाम से जाने थे ज्योतिष पर उनकी इतनी पकड़ थी कि ज्योतिषयो  में ज-
ब कोई विवाद की स्थिति आती थी तब श्री मालीजी अपनी बात सबके  बीच 
रखते थे तब सभी ज्योतिषी उनकी बात एक स्वर मे स्वीकार करते थे स्वामी
जी ने सिर्फ ज्योतिष पर ही 156 किताबे लिखी है जो आज भी जन सामान्य 
मे बहुत ही प्रचलित है मेरा तो यह अनुभव है कि ज्योतिष के क्षेत्र में  स्वामी 
जी के ज्ञान की बराबरी आज के समय में कोई नहीं कर सकता  क्योकि  इस 
स्वामी जी को पंचागुली साधना पूर्णता  के  साथ  सिद्ध थी इसके बल से स्वा -
मीजी भविष्य की भी घटना साक्ष।त देखकर  फल कथन  करते  थे आज  के 
समय में बहुत ही कम योगियो के पास इस विद्या का  ज्ञान  बाकी  रह  गया 
है दूसरे रूप मे कहू तोइस यहविद्या लोप होने के कगार पर खड़ी है  स्वामीजी 
ने अपने जीवनमे बहुत सारीयोगविद्याओ को पुनर्जीवित किया जिनमे  प्राण 
संजीवनी,क्रिया,सम्मोहन के द्वारा लोकविचरण कला ,शक्तिपात क्रिया रावण 
कृत लक्ष्मीआबद्ध विद्या, सिद्धाश्रम गमन और आगम प्रयोग ,परकाया प्रवेश 
सूर्य विज्ञान इत्यादि  हिमालय मे  उच्चकोटि के योगी ,यति  सन्यसियो  में  
स्वामी निखिलेस्वरानंदजी को सर्व्वोच स्थान प्राप्त था  योगियों मे  प्रचलित 
था कि स्वामीजी समस्त सिद्धियो मे पारंगत है संसार  में  ऐसी  कोई  सिद्धी
नहीं थी जो उनके पास नहीं थी उनकी पवित्रता के  आगे  सिद्धी  तो  मामूली 
चीज थी सिद्धियाँ तो उनके सामने हाथ बांधे  खड़ी  रहती  थी  इसीलिए  तो 
वे हिमालय ही नहीं सिद्धाश्रम मे  भी  प्रसिद्द  थे एक बार सिद्धाश्रम में उनकी 
इतनी कठिन परीछा ली गयी तब उन्होंने  स्वयं  कहा  कि  अगर दस हजार 
सन्यासी मिलकर भी इस परीछा को दे तब भी  निश्चित  रूप  से इस परीछा 
मे उत्तीर्ण होना संभव नहीं है लेकिन फिर भी स्वामीजी नेउस परीछा को पूर्ण 
करके दिखा दिया कि उनकी क्षमता को आंकना उन उच्चकोटि  के  योगियों 
के लिये भी संभव नहीं हैं इस प्रकार उन्होंने  साबित  कर  दिया  कि  उनका 
मुकाबला करना व्यर्थ है और हिमालय मे  उनके जैसा कोई नहीं  है तभी तो 
हिमालय मे उस समय होड़ लगी  रहती थी  कि  स्वामीजी  का  शिष्य  कैसे 
बना जाय क्योकि उन दिनों स्वामीजी का शिष्य बनना बहुत मुश्किल कार्य 
ही नहींबिल्कुल नामुमकिन जैसा कार्यथा क्योकि स्वामीजी बहुत ही कठिन 
परीछा लेते थे और जो भी उनकी इस परीछा में पास हो जाता था वह शिष्य 
अपने भाग्य पर इठलाता था क्योकि वह जानता थाकि अब मुझे साधनाओ 
मे सफल होने  की  गारंटी मिल  गयी  है स्वामीजी के साथ रहना जीवन  के 
स्वर्णिम पलो मे से एक था वे  शिष्यों से बहुत ही प्रेम करते थे और  साधना 
पथपर आगे बढ़ाने के लिये  स्वयं ततपर  रहते थे जब वे प्रवचन देते थे  तब 
ऐसे -ऐसे रहस्यों को खोलते थे कि  सुनकर  आश्चर्य से दातो तले उंगली दबा 
लेते  थे स्वामी  जी ने स्वयं भी अपने  जीवन  के  शुरुआती  दिनों  मे  कठोर 
परिश्रम करके  उन  साधनाओ  को किया था एक बार हरिद्वार में कनखल मे 
गंगा नदी के अन्दर लगातार 21  दिन-रात  लगातार  खडे रहकर उर्ध्वगामी 
साधना संपन्न की थी इन 21 दिनों मे पैरो की  खाल  गल  सी  गयी थी और 
मछलियो ने जगह जगह से मांस नोच लिया था  इस  दृस्य को एक सेठ जो 
कि  यात्रा  करने  आया था ,देख रहा था यात्रा के  दौरान  वही  सेठ बद्रीनाथ 
पंहुचा तब सेठ  ने  देखा कि एक साधू बर्फ मे बैठे हुए साधना कर रहा है सेठ
ने पास पहुंचकर  देखा  तो  पाया  कि  यह  तो  वही  साधू है जिसे कुछ दिन 
पहले हरिद्वार मे कनखल की  गंगा  में  खड़े  देखा  था  देखकर  सेठ  आश्चर्य 
से  भर  गया  और  दण्डवत  प्रणाम करके  आशीर्वाद लिया सेठ अपनी यात्रा 
के अगले पड़ाव मे हिमाचल गया  घूमते -घूमते उसने देखा की एक सन्यासी 
एक चट्टान  पर  एक  पैर  पर  खड़े  होकर  तपस्या  कर  रहा है सन्यासी के 
जैसे ही पास पंहुचा देखकर एकदम  आश्चर्यचकित  रह  गया कि यह तो वही 
सन्यासी है  जिसे  मैने  हरिद्वार  ,बद्रीनाथ  और  अब हिमाचल मे  देख  रहा 
हू वह सोचते -सोचते थक गया  कि  एक  सन्यासी  अपने  शरीर को  इतना 
कष्ट देते हुए कैसे  तपस्या  संपन्न  कर  सकता  है तो  कहने  का अर्थ है  कि 
स्वामीजी ने किस प्रकार  अपने  जीवन  को  कठिन  परिश्रम करते हुए और 
अपने  शरीर की  बिल्कुल  भी  परवाह  न  करते  हुए  स्वयं  को  तिल -तिल 
जलाया  था  तब  कही जाकर योग के उन आयामो को छुआ था जो योगियों 
के लिए आज भी  प्रेरणा  के  श्रोत  है  इसके आगे दसो महाविद्याओं को प्राप्त 
करके  उन  श्रेष्ठ  योगियों  में  अपना नाम बनाया जिसे दुनिया योगिराज के  
नाम से  जानती  है  आगे जाकर स्वामीजी  इससे भी उच्चकोटि की तपस्या 
मे संलगन  हुए  और  हिमालय  ही  नहीं  वरन पूरे संसार  मे भी उनके जैसा 
कोई दूसरा तपस्वी नहीं है 





3 comments:

  1. जय गुरुदेव

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  2. आपको अपने गुरु पर श्रद्धा है हम मानते है लेकिन ऐसा कहना कि उनके जैसा योगी इस संसार में नही है तो ये कही न कही आपके अहंकार को दर्शाता है

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  3. Himalya per yaise yaise yogi hai jinki umar 5000 years se bhi jyada hai. 5000 years se samadhi mei leen hai. Jay himalyaraj.

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