आकाश विचरण क्रिया
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हमारे देश में वायु गमन प्रक्रिया कोई नयी बात नहीं है हनुमानजी ,रावण इस क्रिया में महारत प्राप्त थे कालान्तर में यह विद्या लुप्त हो गयी थी मगर भारतवर्ष के योगियों ने इस विद्या को दुबारा से खोज निकाला आज के परिपेछ्य में योगिराज अचुत्यानन्दजी महाराज; योगी विरिज।नंदजी ,
स्वामी परम पूज्य श्री निखिलेस्वरानंदजी ,तेलग बाबा इस विद्या के सिद्ध आचार्य है इसी कड़ी में योगिराज अभ्यानन्दजी का नाम भी शामिल है इससे इन योगियों ने यह सिद्ध कर दिया है की यह विद्या दुबारा से पुनर्जीवि
त हुई है इसको पुनर्जीवितकरने में निश्चयही स्वामी निखिलेस्वरानंदजी का बहुत बड़ा योगदान है क्योकि भारतवर्ष में ये विद्यालगभग लुप्त प्राय हो गयी थी तभी निखिलेस्वरानंदजी ने अपने सन्यस्त जीवन में कई साधको को इस विद्या को सिखाया और इसका प्रचार -प्रसार किया तब कही जाकर इसे नव जीवन प्राप्त हुआ इसी कड़ी में भूरभुवा बाबा , त्रिजटा अघोरी अज।नानंदजी इन्ही के एक शिष्य सदानंद इसके आलावा सिद्धाश्रम को अनेक साधको ने साधना द्वारा वायु गमन क्रिया को पूर्णता के साथ सीखा |
उपरोक्त सभी साधको ने इस क्रिया को तपस्या से प्राप्त किया था मगर पहली बार स्वामी अचुत्यानन्दजी जी ने इसी क्रिया को बिनाकिसी मन्त्र
साधना के केवल आसान और योगासन के द्वारा करके दिखा दिया
कि वायु गमन क्रिया को नवीन तरीके से भी संपन्न किया जा सकता है
उन्होंने बताया कि नाभि के चारो ओर छोटी छोटी ग्रन्थियां होती है उन ग्रन्थियांका एकीकरण नाभि के ठीक नीचे होताहै जिसे सामान्य भाषा में गोली या पेचुटी कहते है नाभि के चारो ओर प्राण वायु होती है अर्थात
ऑक्सीजन भरी होती है जिससे मानव उसके सहारे जीवित रहता है योगिराज अचुत्यानन्दजी ने पद्मासन लगाकर सीधे बैठकर नाभि के नीचे जो छोटा सा गोला था उसे घूम।ना शुरू किया तो उसके घर्षण से वायु गरम होना शुरू हो गयी और ऊपर से योगिराज ने जालंदर बंद्ध लगा लिया
फल स्वरुप प्राण वायु गरम होकर ब।हार नहीं निकल पाई परिणाम स्वरुप शरीर हवा में ऊपर की ओर उठ गया इस प्रकार पहली बार केवल योगिक क्रिया के माध्यम से ऊपर उठकर सबको आश्चर्य चकित कर दिया
आज योगियों ने जो नयी पद्धति विकसित की है इसमें किसी भी प्रकार के तंत्र मन्त्र का सहारा नहीं लिया गया है अपितु केवक योग क्रिया द्वारा ही
यह सफलता प्राप्त की है यह क्रिया अत्यंत ही सामान्य है इसमें जिसको नेती धोती वस्ति क्रिया आदि का ज्ञान है वह इस क्रिया को अचुत्यानन्द
जी से सीख सकता है
तांत्रिक विधी
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वायु गमन प्रिक्रिया सर्व विदित तांत्रिक क्रिया है और मूलरूप से यह रासायनिक क्रिया से सम्बंधित है इसमें पारद के बारह संस्कार संपन्न कर
बुभुक्षित किया जाता है फिर पारद को रजत ग्रास दिया जाता है ऐसा पारद जब रजत ग्रास लेने लग जाये तब उस पारद की गुटिका बनाई जाती है तब उस गुटिका को स्वर्ण अग्नि संस्कार से संस्कारित किया जाता है इसमें गोली अत्यंत सफलता दिलाने वाली होती है इस गोली को मुह में रखते ही व्यक्ति के भूमी तत्व का लोप हो जाता है क्योकि ये गीली व्यक्तिके भूमी तत्व को समाप्त कर देती है इसके परिणाम स्वरुप व्यक्ति ऑक्सीजन से भी हल्का होकर हवा में उठकर वायु गमन कर सकने में समर्थ हो जाता है इसतरह की क्रियामें व्यक्तिकोअपने ऊपर पूरा नियंत्रण रहता है और मुह में ही गोली को दाए या बाए घुमाने पर ऊपर नीचे विचरण करते हुए हजारो फ़ीट की उचाई पर बिना किसी उपकरण के घूमता फिरता रहता है वह जब चाहे जहा चाहे सेकड़ो मील की यात्रा कुछ ही मिंटो में संपन्न कर मनोवांछितजगह पर पहुंच सकता है संसार केश्रेष्ठ तांत्रिको और योगियों ने इस क्रिया को अपनाकर यात्राये संपन्न की है कुछ योगी तो इस क्रिया को इतनी तेज़ी के साथ संपन्न करते है किपलक झपकते ही सेकड़ो मील की यात्रा पूर्ण हो जाती है पाठक समझ सकते है कि आज के युग में ये साधना कितनी महत्वपूर्ण है जब आज के समय मेंमानव कार ,रेल गाड़ीमें कितना समय व्यतीत करके भीड़भाड़ में बड़ी ही परेशानी से यात्रा संपन्न करते है जबकि आज विज्ञान अपने आपको बहुत आगे समझ रहा है मगर वह वास्तव में अभी हमारे ऋषि -मुनियो के ज्ञान से बहुत पीछे है
आज से वर्षो पूर्व विशुद्धानन्द जी काशी में रहते थे और वास्तव में अत्यंत उच्चकोटि के ऋषि थे उन्होंने यही क्रिया अपने आश्रम में उड़कर शिष्यों को दिखा दी फिर क्या था जो भी शिष्य आश्रम में आता वही स्वामीजी से उड़कर दिख।ने की कहता स्वामीजी यह सब करते इतना तंग आ गए कि वह मन ही मन पछताने लगे कि मैंने कितनी बड़ी भूल कर दी जो इन्हे उड़कर दिखा दिया इसीलिए बाद में सन्यासियो ,योगिओ और सभी जानकारों ने इस विद्याको दिखाना बंद कर दिया लेकिन हिमालय में तेलग बाबा आज भी प्रसन्न मुंद्रा में होने पर किसी अपने भक्त के अनुरोध पर उसे उड़कर दिखा देते है वस्तुतः कहने का अर्थ है कि ये सब बाते मात्र कपोल -कल्पित नहीं है इनमे आज भी पूर्ण सच्चाई है हम लोग घर से बहार निकलते नहीं है औरजो कुछ पत्र - पत्रिकाओ से पढ़ने को मिलता है उसी को सत्य मान लेते है यह हमारे समाज की कमजोरी है कि जब महापुरुष हमारे बीच होते है तब हम उन्हें पहचान नहीं पाते क्योकि जीवित रहते हुए ही इनमहापुरुषों से कुछ सीखा जा सकता है हा आज के समय में यह कठिन अवश्य है कि ऐसे महापुरुषों को कैसे पहचाने इसके लिए हमे खोज करनी होगी इतनी आसानी से कुछ नहीं मिलता मगर बराबर खोजने पर इस प्रकृति द्वारा सब कुछ मिल जाता है क्योकि महापुरुष तो हर समय इस प्रकृति पर आतेही रहते है अभी कुछ वर्षो पूर्व जहा तक मुझे याद पड़ता है शायद सन 1998 तक श्रीमालीजी जिन्हे हम निखिलेस्वरानंदजी के नाम से जानते है ,हमारे बीच उपस्थित थे बहुत सारे शिष्य उनसे जुड़े और उनके साथ रहकर इस वायु गमन क्रिया में सिद्धता प्राप्त की | कल फिर पाठको के लिए नया विषय लेकर आउगा ।
आपका प्रिय मित्र -हरीकान्त शर्मा
Aap ka sbhi शिस्य वायू गमन कर सकता है,कृप्या अपने शिश्य से मिला सकते है जो आकाश गमन,दुरदर्शन,दुरश्रवण,रुपपरिवर्तन आदि सिध्दी प्राप्त किये । आपका बहुत आभारी रहुगा
ReplyDeleteKoi sishy hoga tab to batayega ye guru
DeleteAapka koti koti dhanyavad 🙏 iss jaankari ke liye.
ReplyDeleteDattatreya Yogi Maharaj had power of Simrat Gami, thus when recalled by Rishi Daladan he appeared before him wearing Vajra kavach and sitting in Siddah Goraksh asana. The akash marg is coded by Mahakaal Buffalo, Garud , Basuki, Pushka Deepak, Jambu Dweep, Elephant & Crocodile 🐊 of PURV ASHADHA NAKSHATRA.
ReplyDeleteThis is well shown in Indus seal (puneet code indus .com)
ReplyDeleteApka mobile number milega
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